महाकाल तृतीय ज्योतिर्लिंग की स्थापना कैसे हुई ?
उज्जैन में चिरकाल में वेदपति नाम का एक शिव भक्त शिवलिंग की आराधना सहस्र वर्षो से करता आ रहा था |वह भक्त महादेव को अत्यंत प्रिय भी था | जब दैत्य माता ने सृष्टि में नकारात्मकता फैलाने के लिए दूषण नामक एक दैत्य को भेजा तो उसने उज्जैन नगरी में लोगों पर सबसे पहले अपना प्रभाव डालना आरम्भ किया तथा शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया |जिससे लोग आपस में लड़ने लगे , बीमार पड़ने तथा मरने लगे तब वेदपति ने भगवान महादेव को स्मरण किया | जिसके बाद महादेव प्रकट हुए | महादेव ने अपना महाकाल रूप धारण किया उसके बाद दूषण और महाकाल का युद्ध चला |उसमे दैत्य दूषण का अंत महाकाल के द्वारा हुआ |महाकाल ने सबके प्राणों की रक्षा की महादेव अपने भक्त वेदपति से बहुत प्रसन्न थे |वेदपति ने महाकाल से आग्रह किया की हे महाकाल कृपा कर आप हमारे साथ रहें |
महाकाल ने कहा अवश्य रहूंगा ये स्थान मुझे अत्यंत प्रिय है यहाँ पर देवी सती की कोहनी गिरी थी |ऐसा कह कर महाकाल उसी लिंग में विराजमान हो गए |तब से वह स्थान महाकालेश्वर कहलाया |महाकाल मंदिर के बगल में ही जहाँ माता सती की कोहनी गिरी थी वह स्थान अब हरसिद्धि शक्ति पीठ के नाम से विख्यात है |यहाँ पर जो व्यक्ति महाकाल तथा हरसिद्धि शक्ति पीठ का दर्शन करता है तथा ध्यान करता है महादेव उसके प्राणों की रक्षा करते हैं और अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं |
यह स्थान दिव्यता से परिपूर्ण है |
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