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महर्षि दधीचि के द्वारा दिया गया महादान

महर्षि दधीचि के द्वारा दिया गया महादान :

एक बार की बात है देवताओं के अस्थायी गुरु विश्वरूप हुआ करते थे ।  वह देवताओं के लिए कई यज्ञ किया करते थे और उस यज्ञ में दैत्यों को भी भाग देते थे ।  इस बात का पता जब देवराज को चला तब उन्होंने विश्वरूप गुरु की हत्या कर दी । इस बात का पता जब विश्वरूप के पिता महर्षि त्वष्टा को चला तब उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए यज्ञ वेदी से वृत्रासुर को प्रकट किया था । महर्षि त्वष्टा के आदेश पर वृत्रासुर ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया ।

देवताओं ने देवलोक की रक्षा के लिए वृत्रासुर पर अपने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग किया लेकिन सभी अस्त्र शस्त्र इसके कठोर शरीर से टकराकर टुकडे-टुकडे हो रहे थे।  अंत में देवराज इन्द्र को अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा। देवराज इन्द्र भागकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु एवम महादेव के पास गए लेकिन तीनों देवों ने कहा कि अभी संसार में ऐसा कोई अस्त्र शस्त्र नहीं है जिससे वृत्रासुर का वध हो सके।

सभी देवता दुखी हो गए । देवताओं की दयनीय स्थिति देखकर भगवान महादेव ने कहा कि पृथ्वी पर एक महर्षि हैं जिनका नाम दधिचि है।  इन्होंने तप साधना से अपनी हड्डियों को अत्यंत कठोर बना लिया है। उनसे निवेदन करिए की मानव कल्याण के लिए अपनी हड्डियों का दान करें । अगर महर्षि दान के लिए तैयार हैं तो उन के ही हड्डियों से जिस अस्त्र का निर्माण होगा उससे ही वृत्रासुर का अंत संभव है

देवराज इन्द्र ने महादेव की आज्ञा के अनुसार दधिचि से हड्डियों का दान मांगा। महर्षि दधिचि ने संसार के हित में अपने प्राण त्यागने  से पूर्व कुछ समय माँगा ।

उस समय महर्षि दधीचि की धर्मपत्नी गर्भवती थी ।  महादेव ने  महर्षि दधीचि से प्रसन्न होकर ऐसा वरदान दिया था की वह स्वयं पुत्र के रूप में उनके घर जन्म लेंगे ।  उसके दूसरे ही दिन उनके जीवन में बालस्वरूप महादेव आने वाले थे ।

कुटिया के अंदर जाकर उन्होंने अपनी पत्नी देवी सुवर्चा से सारी बातें कही और अनुमति माँगी और क्षमा भी ।  महर्षि बोले देवी अगर आप अनुमति नहीं देंगी तो मेरा दान सार्थक नहीं हो पायेगा ।  मेरे प्राणों के दान के लिए आपकी अनुमति अतिआवश्यक है और मैं इस अवस्था में आपको छोड़कर जा रहा हूँ । मैंने आपको वचन दिया था हर दुःख सुख में साथ देने के लिए , पर मुझे क्षमा करें देवी ।  तब उनकी पत्नी देवी सुवर्चा ने उन्हें अनुमति प्रदान की और क्षमा भी किया ।  फिर महर्षि ने जाकर प्राण त्याग दिए ।

देव शिल्पी विश्वकर्मा जी ने इनकी हड्डियों से देवराज के लिए वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया और दूसरे देवताओं के लिए भी अस्त्र शस्त्र बनाए।

इसके बाद देवराज इन्द्र ने वृत्रासुर को युद्ध के लिए ललकारा। युद्ध में  देवराज इन्द्र ने वृत्रासुर पर वज्र का प्रहार किया जिससे टकराकर वृत्रासुर का शरीर रेत की तरह बिखर गया।  देवताओं का फिर से देवलोक पर अधिकार हो गया और संसार में धर्म का राज स्थापित हुआ।

 

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