भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल का महत्व
भगवान भोलेनाथ का त्रिशूल बहुत ही महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ पवित्रता तथा शुभ कर्म का प्रतीक है शिव का अर्थ है कल्याण स्वरूप
शांत रहने वाले भगवान भोलेनाथ के हाथ में त्रिशूल कोई संहार करने वाला शस्त्र नहीं बल्कि आध्यात्मिक जीवन के तीन आयामों इडा पिंगला तथा सुषुम्ना नाड़ी का प्रतीक है |
ये मानव प्राण को ऊर्जा प्रदान करने वाली नाड़ियां है इन्हीं के द्वारा मानव शरीर में प्राण वायु का संचार होता है |
साधारणतया एक मनुष्य केवल इड़ा पिंगला पर ही निर्भर होकर जीवन व्यतीत करता है और भौतिक जीवन का आनंद लेता रहता है इसी कारण आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य दुर्बल होता है मनुष्य अशांत तथा असंतुष्ट रहता है और आध्यात्मिक जीवन का आनंद नहीं ले पाता है जो कि मनुष्य का धर्म है |
अब बात करते हैं सुषुम्ना नाड़ी की |
सुषुम्ना नाड़ी आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण और इसे सरस्वती नाड़ी भी कहा जाता है |
हमारे शरीर में इसका बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है जब ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी से प्रवाहित होती है तो हमारा मन पूरी तरह से शांत तथा संतुलित व संतुष्ट रहता है भौतिक जगत की कोई भी परिस्थिति इस पर अपना प्रभाव नहीं डाल पाती है |
महादेव को आदि योगी इसीलिए कहा जाता है कि भोलेनाथ ने प्राण ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी से प्रवाहित करके सहस्त्रार चक्र में स्थापित किया था और अपनी कुंडलीनी को जागृत किया था |
इसी कारण भगवान तीनों नाड़ियों का संतुलन स्थापित कर त्रिशूल धारण किये हुए हैं |
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