सोमनाथ प्रथम ज्योतिर्लिंग की स्थापना कैसे हुई?
इसी स्थान पर महादेव चन्द्र को धारण कर’ चन्द्रशेखर बने थे | जब प्रजापति दक्ष ने चंद्रदेव को श्रापित किया था | जिसके कारण चंद्रदेव का क्षय होने लगा था | तब चंद्रदेव भोलेनाथ की तपस्या करने लग जाते हैं | तब माता सती अपनी बहनों को वैधव्य से बचाने के लिए भोलेनाथ के पास आयी और बोली महादेव आपके होते हुए ये अनर्थ कैसे हो सकता है। मेरी 27 बहनों का विवाह चंद्रदेव से हुआ है मेरी सभी 27 बहनों को वैधव्य का दुख भोगना पड़ेगा महादेव कुछ कीजिये |
महादेव बोले चन्द्रदेव को अपने कर्म का फल भोगना होगा | उन्होंने अपने पति धर्म का पालन सही से नहीं किया है |तब माता बोली बताईये महादेव यदि किसी व्यक्ति को अपनी गलती का एहसास हो जाए तो क्या उसे क्षमा प्राप्त नही होनी चाहिए |कृपा करके चंद्रदेव को पिताश्री के श्राप से निवारण का मार्ग दिखाये |
तब जिस स्थान पर चन्द्र देव भगवान भोलेनाथ की भक्ति कर रहे थे वहाँ महादेव पहुंचे और दर्शन दिये |चंद्रदेव बोले मैं धन्य हुआ महादेव की आपने मुझे दर्शन दिए | कृपा कर श्राप मुक्त करें |महादेव बोले श्राप को वापस नही लिया जा सकता है। वो फलित अवश्य होगा |तब चन्द्रदेव बोले क्या मेरी मृत्यु निश्चित है महादेव ?
महादेव ने कहा ऐसा नहीं है | मैं तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हूँ तुम्हें मैं अपने शिश पर धारण करूंगा जिससे तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी लेकिन 15 दिन तक तुम्हारा क्षय होगा इसके बाद यह श्राप अमावस्या के दिन फलित होगा |और इस समय को कृष्ण पक्ष कहा जायेगा |
अमावस्या के अगले 15 दिनों तक तुम्हे मेरी जटाओं से ऊर्जा प्राप्त होगी धीरे धीरे तुम अपने चरम पर होगे और वह पूर्णिमा की रात्रि होगी और इसे शुक्ल पक्ष कहा जायेगा | तुम्हारा जीवन चक्र ऐसे पूर्ण होगा | चंद्रदेव ने उनका आभार व्यक्त किया और महादेव ने चंद्र देव को अपने शिश पर धारण किया |
यह स्थान महादेव की भक्ति को समर्पित है इसी स्थान पे चंद्रदेव को धारण कर महादेव चंद्रशेखर हुए | चन्द्र देव को सोम भी कहा जाता है इसलिए वह स्थान सोमनाथ कहलाया और इसी कारण यहाँ पर प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ ज्योतिलिंग की स्थापना हुई सोमनाथ ज्योतिलिंग गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे सोमनाथ में स्थापित है
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