बुधवार व्रत कथा
एक समय की बात है एक व्यक्ति का विवाह हुए कई वर्ष बीत गए। विवाह के बाद उसकी पत्नी एक बार अपने मायके गई हुई थी। पत्नी के मायके में रहने के कई दिनों बाद उसका पति अपनी पत्नी को विदा करवाने के लिए ससुराल पहुंचा। ससुराल में कुछ दिन तक रहने के बाद वह पत्नी को मायके से विदा करने की बात अपने सास-ससुर के कही। बुधवार का दिन होने के कारण उसके सास-ससुर ने कहा कि इस दिन बेटी ससुराल नहीं जा सकती इस कारण विदाई नहीं हो सकती है। लेकिन वह व्यक्ति नहीं माना और अपनी पत्नी को मायके से विदा कराकर अपने घर की तरफ चल दिया। रास्ते में जाते वक्त पत्नी को बहुत तेज से प्यास लगी तब पति पानी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगा। काफी देर के बाद जब वह पानी लेकर वापस लौटा तो उसने देखा कि पत्नी के पास उसी की वेशभूषा में कोई अन्य व्यक्ति पत्नी के संग बैठकर बाते करता हुआ दिखाई दिया।
दोनों व्यक्ति आपस में लड़ने लगे। पहले व्यक्ति ने गुस्से में दूसरे व्यक्ति से पूछना लगा कि वह कौन और क्यों उसकी पत्नी के साथ बैठकर बाते कर रहा है। फिर आपस में लड़ने लगे। दूसरे व्यक्ति ने कहा कि यह मेरी पत्नी है। दोनों की बीच भयानक लड़ाई होने लगी तब वहां पर कुछ सिपाही आ गए और स्त्री से उसके असली पति के बारे में पूछने लगे। दोनों व्यक्ति को देखकर स्त्री हैरान हो गई कि कौन मेरा पति है। वह दुविधा में पड़ गई क्योंकि दोनों एक जैसे ही लग रहे थे।
तब पहला व्यक्ति परेशान होकर मन में कहा कि भगवान ये आपकी कैसी लीला है। तभी आकाशवाणी हुई की बुधवार के दिन पत्नी को विदा करवा कर नहीं ले जाना चाहिए था। यह सब सुनकर पहला व्यक्ति समझ गया की यह भगवान बुध की लीला है। फिर वह व्यक्ति बुद्धदेव से प्रार्थना करने लगा और क्षमा मांगने लगा। फिर फौरन ही बुद्धदेव अंतर्ध्यान हो गए और उस व्यक्ति को अपनी पत्नी मिल गई। तभी से हर दिन बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा होने लगी।
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